इलाहाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला: बिना धर्म परिवर्तन अंतर-धार्मिक विवाह अवैध
आर्य समाज मंदिर में हुए विवाह पर सवाल, स्पेशल मैरिज एक्ट की मान्यता बरकरार
इलाहाबाद, 28 जुलाई
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि बिना धर्म परिवर्तन के दो अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच किया गया विवाह अवैध माना जाएगा, यदि वह व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों के अंतर्गत हुआ हो। कोर्ट ने यह फैसला एक ऐसे मामले में दिया जिसमें आर्य समाज मंदिर में बिना विधिवत धर्म परिवर्तन के शादी की गई थी।आर्य समाज विवाहों की जांच के आदेश
जस्टिस प्रशांत कुमार की सिंगल बेंच ने उत्तर प्रदेश के होम सेक्रेटरी को निर्देश दिए हैं कि ऐसे आर्य समाज संस्थानों की जांच कराई जाए, जो नाबालिगों या अलग-अलग धर्मों के लोगों को विवाह प्रमाण पत्र जारी कर रहे हैं। यह जांच डीसीपी स्तर के आईपीएस अधिकारी से कराकर 29 अगस्त तक हलफनामे के साथ रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है।
क्या कहता है कानून?
भारत में अंतर-धार्मिक विवाहों को मुख्य रूप से स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत मान्यता मिलती है। इसके तहत किसी भी धर्म के व्यक्ति बिना धर्म परिवर्तन किए विवाह कर सकते हैं, बशर्ते विवाह की प्रक्रिया – नोटिस और सार्वजनिक प्रदर्शन सहित – विधिवत पूरी की गई हो। यह कानून धर्मनिरपेक्ष है और किसी धार्मिक अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती।
व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों में पेंच
हालांकि, हिंदू विवाह अधिनियम, मुस्लिम पर्सनल लॉ, ईसाई या पारसी विवाह कानूनों में अंतर-धार्मिक विवाह की स्थिति भिन्न है। इनमें अक्सर विवाह से पहले धर्म परिवर्तन आवश्यक होता है। विशेष रूप से हिंदू विवाह अधिनियम के तहत, एक गैर-हिंदू से विवाह तभी वैध माना जाता है जब वह हिंदू धर्म स्वीकार कर ले।
यूपी धर्म परिवर्तन कानून का भी प्रभाव
उत्तर प्रदेश धर्मांतरण निषेध अधिनियम, 2021 के अनुसार, विवाह के लिए धर्म परिवर्तन से पूर्व जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति आवश्यक है। बिना अनुमति धर्म परिवर्तन और उससे जुड़ी शादी को अपराध माना गया है।
स्पेशल मैरिज एक्ट पर कोई असर नहीं
हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर्ड विवाह इस निर्णय से प्रभावित नहीं होंगे। वर्ष 2024 में एक अन्य फैसले में जस्टिस ज्योत्सना शर्मा की बेंच ने स्पष्ट कहा था कि अंतर-धार्मिक जोड़े बिना धर्म परिवर्तन के इस एक्ट के तहत शादी कर सकते हैं।